विधवा-प्रथा

भारत एक प्राचीन देश है।यहाँ बहुत से धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं।यहाँ की सामाजिक संरचना कुछ इस प्रकार की गई है कि परिवार में पुरुष ही प्रधान होता है।पुराने समय में यहाँ बाल-विवाह होते थे।लड़का हो या लड़की-बहुत छोटी उम्र में ही उसका विवाह कर दिया जाता था।उस समय में कई रोग लाइलाज होते थे।तो ऐसे में अगर लड़के की मृत्यु छोटी उम्र में ही हो जाती थी तो लड़की को दूसरा विवाह करने की आजादी नहीं थी।
यहाँ तक कि उसके सिर के सारे बाल काट दिए जाते थे।उसे अपने पति की विधवा बनकर सारी जिंदगी गुजार देनी पड़ती थी।और तो और,उस पर नाना प्रकार के जुल्म भी ढहाये जाते थे।और अगर पति थोड़ी बड़ी उम्र में गुजरा है और सौगात के रूप में बाल-बच्चे देकर गया है,तो उनकी परवरिश का बोझ भी बेचारी स्त्री पर ही आ जाता था।परिवार तो परिवार,समाज भी विधवा को दूसरा विवाह करने की इजाजत नहीं देता था।
समाज में विधवा को हीन दृष्टि से देखा जाता था।उसे घर के मांगलिक कार्यों में सम्मिलित नहीं किया जाता था।इसके पीछे तर्क दिया जाता था कि वह विधवा है,इसलिए मांगलिक कार्यों के लिए अशुभ है।घर में ही नहीं पड़ोस,रिश्तेदार और अन्य जान-पहचान वाले घरों में उसके जाने पर प्रतिबंध था।
धीरे-धीरे समय बदला और शिक्षा ने अपना प्रभाव डालना शुरू किया।कुछ पढ़े-लिखे लड़कों ने आगे बढ़कर विधवा स्त्रियों से विवाह का रिश्ता बनाना शुरू किया।परिवार और समाज ने उनका विरोध किया।लेकिन क्योंकि एकलवादी परिवार होने लग गए थे,तो लड़के उस विधवा से विवाह करके अपना अलग घर बसाने लगे।
आज बहुत से पढ़े-लिखे लोग भी यह समझने लगे हैं कि अगर कोई लड़की छोटी उम्र में विधवा हो जाती है,तो उसे दोबारा विवाह करने से नहीं रोकना चाहिए।इसलिए या तो ससुराल वाले(जिनकी संख्या बहुत कम है)ही अपनी बहू का दूसरा विवाह करवा देते हैं।अन्यथा उस लड़की के माता-पिता अपनी बेटी के लिए उसके योग्य वर की तलाश करके उसका विवाह संपन्न करवा देते हैं।
हालांकि अभी भी बहुत सी विधवाओं के विवाह नहीं हो पाते जिसके पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि लड़के,विधवा लड़की को तो स्वीकार करने के लिए तैयार हो जाते हैं,परंतु उसकी संतान को नहीं।कुछ विधवाएँ खुद भी दूसरा विवाह यह सोचकर ही नहीं करती कि होने वाला पति उसके बच्चों को पिता का प्यार दे पाएगा कि नहीं।
कुल मिलाकर,सार यह निकलता है कि इस प्रथा का जड़ से नष्ट होना आवश्यक है। यह तभी संभव है जब लोग एक विधवा स्त्री को भी उतना ही सम्मान दें,जितना एक सामान्य स्त्री को दिया जाता है।तभी हमारे समाज से इस प्रथा का अंत होगा और भारतीय समाज विश्व में आदर्श समाज कहलाएगा।

Author: nktmirror

I am a teacher by proffesion. Presently I am working in tges,an educational institute,situated in Rajkot,Gujarat.I am teaching Hindi in this institution.I am working with this instirution since 18 years.

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